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'युवा स्त्रियाँ क्या लिख रही हैं' का जवाब है 'अलगोजे की धुन पर'- महेश कुमार

 

 





'अलगोजे' का अर्थ है 'बाँसुरी'। इसमें छिद्र बने होते हैं जिससे संगीतात्मकता अपनी राह बनाती हुई ध्वनियों का अर्थ खोलती है। अलग-अलग छिद्रों पर संतुलन साध कर वादक नए-नए धुन बनाकर सह्रदय को अपनी महत्ता से परिचय कराता/कराती है। दिव्या विजय की यह पहली कहानी संग्रह वही 'अलगोजा' है जिसके जरिए वह स्त्री लेखन के विभिन्न विषयों(धुनों) को पाठक के सामने प्रस्तुत करती हुई स्त्री लेखन के महत्ता और प्रासंगिकता को संप्रेषित करना चाहती हैं।

 

                                      2017 में राजपाल प्रकाशन से यह कहानी संग्रह आया। उसी साल 'लिट्-ओ-फेस्ट' मुंबई में श्रेष्ठ पांडुलिपि अवार्ड से सम्मानित भी किया गया। इसमें कुल दस कहानियाँ हैं।

 सभी कहानियों के विषय अलग-अलग हैं। प्रथम दृष्टया संग्रह पढ़ने पर ऐसा लगता है कि स्त्री पात्रों की कहानियाँ हैं जो कि हैं भी। परन्तु, पुरुष पात्र भी उतने ही शामिल हैं। पहली ही कहानी में पुरुष पात्र प्रत्यक्ष रूप से संवाद में न होते हुए भी दोनों स्त्री पात्रों पर वही छाया हुआ है। 'कबीर' कहानी के केंद्र में है। कबीर के प्राथमिकताओं का ही स्थानापन्न कभी स्वप्ना में हो रहा है और कभी अन्मेषा में। 'कबीर' के वजह ही दो स्त्रियाँ आपस में मिल रही हैं और एक दूसरे को परखने की कोशिश कर रही हैं कि आखिर क्या बात है कि कबीर मेरे साथ होते हुए भी अपनी पूर्व प्रेमिका की चिट्ठियाँ सहेजे हुए है? वहीं उसकी पूर्व प्रेमिका यह परख रही है कि स्वप्ना में ऐसी क्या बात है जो मुझमें नहीं है? यह दृष्टि प्रेमी के नजरिए से खुद को देखने की ही है। दोनों ही स्त्रियों पर पुरुष की वैधता/मान्यता का दवाब है। इस लिहाज से यह कहानी एक सामान्य त्रिकोणीय प्रेम कहानी की तरह लगती है। लेकिन कहानी विशेष तब बनती है जब दोनों स्त्रियों के बीच एक प्रेम आकार लेता है और उस क्षण कबीर खो जाता है। वह क्षण है जब स्वप्ना अन्मेषा के होंठ चूम लेती है। वह वात्सल्य मिश्रित प्रेम हो सकता है,भावावेश और सखा मिश्रित प्रेम हो सकता है पर लेस्बियन संबंध नहीं है। पाठक को ऐसा भ्रम भले हो सकता है। यहाँ दो स्त्री एक पुरुष के लिए आरोप-प्रत्यारोप और एकदूसरे के चरित्रहनन का सहारा नहीं ले रही हैं। इस तरह कहानी पुरुष दृष्टि के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त भी नहीं है और कैद भी नहीं है। कहानी पुरुष केंद्रित दृष्टि से मुक्त होने के प्रयास में है।

 

'प्रेम पथ ऐसो कठिन' प्रेम संबंधों की जटिलता और उसके मनोविज्ञान के संदर्भों को समझने का प्रयास है। आधुनिक जीवन शैली ने मानवीय संबंधों को जटिल बनाया है खासकर प्रेम संबंधों को। प्रेम में भावना(आत्मा) बनाम सेक्स(देह)पर भौंडे किस्म के बहस लगातार हो रही है। इसी बीच रिलेशनशिप को परिभाषित करने के लिए नए-नए आयाम खोजे जा रहे हैं। डेटिंग,कैजुअल सेक्स,फ्रेंड विथ बेनिफिट,कमिटेड रिलेशनशिप,पॉलीमरस,ओपन रिलेशनशिप इत्यादि कई श्रेणियों पर चर्चा भारत में बनी हुई हैं। बदलते परिवेश, आर्थिक व्यवस्था और वातावरण ने मनुष्यों के संबंध और व्यवहार दोनों में बदलाव लाया है। इसे समझे बिना वर्तमान समय में चल रहे विभिन्न रिलेशनशिप स्टेटस को नहीं समझा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि भारत में उपर्युक्त वर्णित रिलेशनशिप का अस्तित्व पहले नहीं रहा है। खूब रहा है। कृष्ण और गोपियों के प्रेम संबंधों में इसकी झलक मिलती है। नायक-नायिका भेद में इसकी झलक है और मध्यकालीन बादशाहों के हरम इसके गवाह हैं। दिक्कत हमेशा से लेबलिंग(labelling) अर्थात्,ठप्पाकरण की रही है। यह कहानी भी इसी लेबलिंग की है। लड़की को एक साथ तीन पुरुषों से प्रेम है। तीनों पुरुष एकदूसरे से अंजान हैं। तीनों लड़की को स्पेस देते हैं और चिट्ठी लिखते रहते हैं। लड़की को लगता है तीनों को एकसाथ बुलाकर प्रेम का इजहार करेगी। तीनों लड़कों को जैसे ही पता चलता है कि एक साथ तीन लोग को प्रेम करती है तो लड़के उसे लेबल करते हुए एक साथ कहते हैं 'यू ब्लडी प्रॉस्टिट्यूट'

 

                                         ठीक यही हाल 'परवर्ट' कहानी के पात्र की भी है। लोग उसके जटिल व्यक्तित्व को समझ ही नहीं पा रहे हैं। उसका जिस तरह का व्यवहार है उसे लोग पागल और परवर्ट(व्याभिचारी) समझेंगे ही क्योंकि भारत में मनोविज्ञान और मानवीय व्यवहार को लेकर जागरूकता बेहद निम्न स्तर का है। सामाजिक और सार्वजनिक परिवेश ऐसा बना हुआ है कि आप किसी को दूर से भी प्रेम जताते हुए निहार भी रहे हैं तो लोग परवर्ट समझेंगे ही। इसका असर उस व्यक्ति के बच्चे पर हो रहा है। बच्चा बाप को अविश्वास की नजरों से देखने लगा है।

 

इस संग्रह की दो कहानी प्रभाव के स्तर पर बेहद मजबूत है। 'नजराना-ए-शिकस्त' और 'बिट्टो'। पहली कहानी में एक औरत कार हादसे में जलकर मर गयी है। उसका पति उसपर पूर्ण नियंत्रण रखता और खूब अत्याचार करता था। मरने के बाद रोता है। लेकिन जैसे ही उसे पता चलता है कि इसके साथ एक और पुरुष भी था उस कार में तो उसकी सारी चिंता इस बात पर टिक जाती है कि वह पुरुष कौन था? क्या वह उसके साथ संबंध में थी? अब मेरे इज्जत का क्या होगा? शिश्न केंद्रित कुंठा की बेहद मजबूत कहानी है यह।             

'बिट्टो' एक किशोरवय लड़की है। बेहद संवेदनशील और प्रकृति प्रेमी इतना कि एक फूल मुरझा जाए या टूट जाए तो रोकर हाल बुरा कर लेती है। स्कूल में एक लड़के से उसे प्रेम होता है। लड़का उसकी भावनाओं के साथ धोखा करता है। समाज ताने देता है। उसकी पढ़ाई छूट जाती है। उसका किशोरवय और चहकना खत्म होने लगता है। उसकी सहेली उससे नहीं मिलना चाहती क्योंकि समाज के नजर में वह अब बदचलन है। बिट्टो कहती है 'मुहब्बत बेजा बात है?' यह कहानी टीनएज की दुनिया खासकर लड़कियों की टीनएज की दुनिया और मानसिक हलचलों की पड़ताल करती है। लड़के टीनएज में पहुँचते ही प्रायः पुरुषवादी समाज के अनुकूल आक्रामक और सेक्सिस्ट रवैया में खुद को प्रशिक्षित करने लगते हैं वहीं लड़कियों की दुनिया धोखा, द्वंद्व, मानसिक उलझन, शरीर को लेकर कुंठा और आजादी को कमतर होते हुए महसूस करने में गुजरने लगता है। एक तरह से वे इंफेरिओरिटी कॉम्प्लेक्स और आत्मविश्वास की कमी का शिकार होने लगती हैं। कहानी इसी विचार को रखती है। इस कहानी का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है 'नीलाभ' और उसकी उपस्थिति। जब स्त्री पुरुषों को मानवीय और संवेदनशील पात्र की तरह प्रस्तुत करती हैं तो उसके मिजाज को दर्शाने के लिए जो भाषा चुनती हैं उसको देखना चाहिए। नीलाभ बिट्टो का एक तरह से कॉउंसलिंग करना चाहता है। उसे पहले जैसे देखना चाहता है। वह उसे बताने के लिए चिट्ठियाँ लिखता है। पर वह उसे दे नहीं सकता। उसे नई परेशानी में नहीं डालना चाहता है। उसे पता है कि बिट्टो नितांत अकेलापन में कहाँ बैठती है। वह चिट्ठियों का पुलिंदा उसी मधुमालती के लताओं की नीचे रख आया जिसके आखरी खत में लिखा था 'मुहब्बत बेजा बात नहीं है'

 

                                         'फिसलते फासलों की रेत घड़ी' में सिंगलनेस को जीने की जिद है और अपनी राह बनाने का संकल्प है। 'एक जादूगर का पतन' वर्तमान समय के प्रेम संबंध के निर्मिति की कहानी है। सोशल मीडिया के बहाने बनते प्रेम संबंध, लड़कियों और उसके परिवार के बीच कम्युनिकेशन गैप के कारण जो खालीपन आता है उसे भरने के लिए विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण और उससे बनने वाले प्रेम संबंध, रोमांटिक फिल्मों और साहित्य के प्रभाव में हैंडसम लुक,कूल बंदा को बॉयफ्रेंड बनाने का चलन। इन सबसे बढ़कर थोड़ा केयरिंग दिखाने वाले लड़के और कसमें-वादे खाने वाले को ड्रीम बॉय समझने की गलती करने वाले लड़कियों की कहानी है 'एक जादूगर का पतन'। उपर्युक्त तरीकों से लड़के लड़कियों को प्रेम जाल में फँसाते हैं और उन्हें सेक्स सामग्री की तरह उपभोग करके छोड़ देते हैं। इसे वे अपना हुनर समझते हैं। ऐसे लड़के हर शहर और संस्थानों में प्रायः मिल जाते हैं। मैं विद्यार्थी हूँ और युवा भी तो प्रायः ऐसे युवाओं से मुलाकात होती है जिनका उद्देश्य ही यही है कि कम से कम बीस लड़की पटानी है और उनके साथ सेक्स करना है। इसके लिए वो उपर्युक्त तरीका अपनाते हैं। उन्हें कभी इस बात का अफसोस भी नहीं होता है। इस कहानी को आदर्शवादी तरीके से दिखाया गया है कि लड़के को अफसोस है और वह हॉस्पिटल में पड़ा-पड़ा सुनहरे बालों वाली लड़की को याद करता रहता है। कहानी का यही ट्रीटमेंट कमजोर लगता है।

 

                                             'प्यार की कीमिया' कहानी में एक कॉलेज की लड़की है। सेक्स वर्कर है। साहित्य की बेजोड़ विद्यार्थी है। एक लड़के को उससे प्रेम होता है। वह जैसी है उस रूप में उसे स्वीकार करता है। समय के साथ पुरुषवादी ईर्ष्या हावी होने लगता है। लड़की के पहले प्रेमी ने भी उसे नियंत्रित करना चाहा था। अपने वर्तमान प्रेमी से लड़की दूर हो जाती है। उसे इस स्थिति का अंदाजा पहले से ही था। लड़के को बाद में अफसोस होता है। वह वापस उस जगह पर जाकर प्रतीक्षा करता है जहाँ वह पहली बार लड़की से मिला था। कहानी प्रेम में देह बनाम भावना के बहस को आगे बढ़ाती है। लेखिका का प्रस्ताव है कि 'इन्द्रियाँ अपना सुख लेते हुए मन की निश्छलता पर सदा ही कीचड़ उछाल दें ऐसा कतई आवश्यक नहीं है।'

 

                          यह कहानी संग्रह सेक्युलिटी, स्त्री-पुरुष संबंध और स्त्रियों की विभिन्न आयामों की अभिव्यक्ति है। एक पंक्ति में कहूँ तो 'स्त्री प्रश्नों के विभिन्न शेड्स हैं'। युवा स्त्रियाँ क्या लिख रही हैं,विविधता है कि नहीं और कितना मजबूत लिख रही हैं जैसे सवाल करने वालों को एक जवाब के रूप में भी इसे पढ़ा जा सकता है।

 

  





महेश कुमार

 

ईमेल:-manishpratima2599@gmail.com

 

पक्षधर,जानकीपुल, समकालीन जनमत,फॉरवर्ड प्रेस,सबलोग और पोषम पा में समीक्षाएँ प्रकाशित।

 

 

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