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दुनिया के खूबसूरत लफ्ज़ उम्र कैद की सज़ा काट रहे हैं- ललन चतुर्वेदी की कविताएँ

(हिन्दी कविता में नया स्वर) 

 

ललन चतुर्वेदी हिन्दी कविता के लिए नया नाम प्रतीत हो सकते हैं लेकिन अपने कथ्य और गढ़न में ये कविताएं किसी नए कवि की कविताएँ नहीं लगतीं बल्कि सटीक दृश्य रचते हुए, पूरे भाषायी कौशल के साथ अपनी बात रखती हैं और कविता में कविता का आनंद बचाए रखती हैं। ये कविताएँ आश्वस्त करती हैं कि दूर दराज़ के क्षेत्रों, कस्बाई शहरों में लिखने वाले कवि कविता की मुख्यधारा की उपेक्षा के बाद भी अपने अंदर कविता को न सिर्फ़ बचाए हुए हैं, निरंतर अच्छी कविताएँ रचने के लिए भी प्रयासरत हैं। कवि के ही शब्दों में - 'गूंजा जा सकता है पार्श्व- संगीत की तरह' अपनी कविताओं के साथ। 

 







दुनिया के खूबसूरत लफ्ज़
उम्र कैद की सजा काट रहे हैं
-------------------------------
संसार की सबसे खूबसूरत उपमाएं
संसार की सबसे खूबसूरत भावनाएं
संसार के सबसे खूबसूरत शब्द
किताबों और बयानों में कभी नहीं मिलते
उनके भाग्य में नहीं लिखा है
तहखाने से बाहर आना

अक्सर अपने रचे प्रेम पत्रों को पढ़ता हुआ
पुरुष होने के बावजूद मैं लाज से गड़ जाता हूं
अकेले कमरे में सहम सहम कर इन्हें पढ़ते हुए
मेरे सामने खड़ी हो जाती है प्रेयसी
और पूछती है सवाल-
बच्चू! इतना आसान है क्या प्यार करना

अकेले में भी  नजरें झुक जाती हैं
मैं पत्रों को फाइल में बंद कर
पुराने टिनही बक्से में  रख देता हूं
और लगा देता हूं अलीगढ़ी ताला

दुनिया के सारे खूबसूरत लफ्ज़
उम्र कैद की सजा काट रहे हैं
दुनिया के पवित्र दस्तावेज
नदियों की गोद में गाद बन गए हैं
आग की लपटों में जो खूबसूरत लौ है
वे इन्हीं प्रेम पत्रों के विद्युतकण हैं

अपनी तमाम विरासत
अपने पुत्र को खुशी-खुशी सौंप कर
कूच करता हुआ पिता
अपने प्रेम पत्रों को अपनी संतान के हवाले
करने का साहस क्यों नहीं जुटा पाता ?

अपने प्रेम पत्रों का पुनर्पाठ करते हुए
बरबस, विवश पिता की याद  आती है
और सोचने लगता हूं -
कहां गायब हो ग‌ए उनके प्रेम पत्र
और फिर हमारी आंखें
सतर्क हो जाती है कि कहीं
मेरी ही संतान यह न पूछ बैठे कि
गाहे-बगाहे आधी रात में
इस कोठरी के नीरव वातावरण में
पिताजी आपका चेहरा
जीरो वाट के पीले बल्ब जैसा क्यों हो जाता है ?
 
 




प्रेम किसानी

तमाम असंभावनाओं के बावजूद
तलाशी जानी चाहिए प्रेम की संभावनाएं
जैसे सुखाड़ के दिनों में किसान
बारिश की उम्मीद करते रहते हैं
आख़िर- आखिर तक
रह- रह कर ताकते रहते हैं आकाश की ओर

जब चटक धूप खिली होती है
तब भी कहते हैं - बहुत गरमाया है दिन
आज सांझ तक बारिश होगी
और इस तरह उम्मीद में
एक दिन कट जाता है खुशगवार

चलो,बीत गया चतुर्मास
नहीं रोप पाए धान
कोई अफसोस नहीं
करते हैं रब्बी की बुआई
मौसम कोई भी हो
उम्मीद की फसलों की बुआई जारी रखते हैं
प्रेमी और किसान
आखिर प्रेम भी तो किसानी ही है ।



नमक की तरह

राज  करने के लिए
किसी को नाराज़ करना जरूरी नहीं है
जग जीतने के लिए
जंग जीतने की बात करना
निहायत  मूर्खतापूर्ण प्रस्ताव है

ज़रूरी नहीं कि
अभिनेता की तरह हो प्रवेश 
चलचित्र समाप्त होने के बाद
गूंजा जा सकता है पार्श्व- संगीत की तरह

उपस्थिति जब अनुभूति बन जाती है
बढ़ जाता है जीने और जीमने का स्वाद
बगैर किसी शोर-शराबे के
घुला जा सकता है किसी के जीवन में नमक की तरह।



विस्मृति का सुख

मैं कुछ भी याद रखने के पक्ष में नहीं हूं
यादें अंततः दुःख देती हैं
किसी के द्वारा किया गया उपकार भी
एक दिन हमें शर्मिन्दा करता है

मैं कृतघ्न नहीं हूँ 
पर कृतज्ञता-ज्ञापन में संकोची हूं
मुझे प्रदर्शन  की कला नहीं आती
मैं उस पीढ़ी का आखिरी वंशज हूं
जो औपचारिकता पूरी करने के बजाय
हृदय में किसी को बिठा लेते हैं।

विस्मृति में अद्भुत सुख है
किसी के द्वारा किया गया अपमान
किसी के द्वारा लुटाया गया प्यार
सब को भूल जाने से हम हल्का हो जाते हैं
सफर में कितना ढोयेंगे बोझ
सांसें उखड़ जाएंगी
 
मैं ईश्वर को कघरे में खड़ा नहीं कर सकता
पर इतना जरूर कहूंगा कि
कुछ लोग गलत समय मैं पैदा हो जाते हैं।
हे ईश्वर ! जरूरी समय
जरुरी लोगों को जरूर भेजा जाए।


 
दुःख

दुःख हमारे सिर पर ठोकर मारने वाली चिड़िया है
जो कहीं से उड़ कर आती है अचानक
एक झटका देती है अकस्मात
जब तक संभलते हैं हम
वह फिर पहुंच जाती है
हम उसे पकड़ने की कोशिश करते हैं
वह फुर्र से उड़ जाती है
हम हैं कि कोशिश करते हैं बार-बार
उड़ती हुई चिड़िया को पकड़ने की
उसके चले जाने के बाद भी
करते रहते हैं ठोकर की याद
इस तरह हम दुःख को पकड़े रहते हैं
जीवन भर दुःख से जकड़े रहते हैं।


मैं टंगी रहूँगी कैलेंडर की तरह 
 
खरीद कर तो नहीं लायी गई थी
पर टांगा गया मुझे कैलेंडर की तरह
हर तारीख को घेरा गया
कभी लाल,कभी काली स्याही से
पर कहीं कोई हरी स्याही नहीं थी
हाँ,ये जरूर है कि
मेरे चेहरे की इबारत कभी नहीं पढ़ी गई
मैं रोज के हिसाब-किताब की चीज हो गई
और सब कुछ का लेखा-जोखा
अर्थात पूरे घर की खाता- बही
मुझे मूक होकर समझना था
कुछ कही, कुछ अनकही
बावजूद इसके पूरी तत्परता से प्रस्तुत होना-
यह नारी- धर्म था
इतना कुछ जानने- समझने के बाद
सुनती रही जीवन भर-
औरत की बुद्धि घुटने में होती है
हाँ,सच ही तो कहा तुमने-
मैंने तो घुटने टेक दिये हैं
नहीं तो अपने  घुटने में असह्य दर्द के रहते हुए भी 
मैं तेरे पाँव दबा रही हूँ
तुम्हारे घुटने दुरुस्त रहने जरूरी हैं
तुम्हारे लिए तो रास्ते हैं, मंज़िलें हैं
मुझे कोई शौक नहीं है
तुमसे कदम से कदम मिला कर चलने का
मेरे लिए दीवार है
मैं सालों भर इसी पर टंगी रहूँगी कैलेण्डर की तरह।
 
 
 
कुत्ते
(एक)
कुत्ते हैं
भौंकेंगे ही
बात- बेबात
चौकेंगे ही।
 
 
(दो)
ज़रुरत मुताबिक
पूंछ हिलाते हैं
वक्त की नजाकत देख
दुम दबा निकल जाते हैं
वफादार ही नहीं
बुद्धिमान भी होते हैं कुत्ते
 
 
(तीन)
कुत्ते नहीं चाहते कि
उनकी ही तरह
कुछ और पैदा हों कुत्ते
यदि हों भी तो
मत आए उनकी सरहद में
देखते नहीं हो
पूरी ताकत लगा
कर देते हैं तरी पार
दूसरे कुत्ते को।
 
(चार)
कुत्ते आप से उतना ही प्रेम करते हैं
जितना प्रेम वे आपसे पाते हैं
बड़ा सटीक होता है उनका गणित
मामूली आदमी के वश में नहीं
किसी कुत्ते का प्रेम पाना
मामूली आदमी में हिम्मत नहीं
किसी कुत्ते से बैर करना भी।
(पांच)
नस्लों की विविधता में
इनका कोई सानी नहीं
किसी देश-काल, जलवायु में
इन्हें कोई परेशानी नहीं
मालूम हो जिसे अनुकूलन की कला
क्या बिगाड़ सका है कोई उसका भला?
 
(:)
धनी, गरीब, सेठ-साहूकार
मूर्ख, विद्वान , यहां तक कि खानाबदोश भी
सब पालना चाहते हैं कुत्ते
और अपनी- अपनी औकात के मुताबिक
बाकायदा पालते भी हैं
कुत्ते जरूरतों में क्यों शामिल हैं
यह एक जरूरी सवाल है।
(सात)
बाघों की संख्या कम हो रही है
कम हो रही  है गौरेया
लगता है एक दिन
कोयल लुप्त हो जाएंगी
कौवे की बात कौन करे
मगर सृष्टि के अवसान काल तक
बने रहेंगे कुत्ते
सिर्फ अपने बल बूते।


भूख का बाजार

भूखा आदमी भूख की चर्चा नहीं करता
सार्वजनिक नहीं करता  इस निजी दुःख को
अपनी भूख मिटाने के लिए
कभी अनशन पर नहीं बैठता
भूख की तरह बचाता है
आखिरी सांस तक आत्म सम्मान को।
उसे बड़ा दुःख होता है
जब सभ्य लोग भूख पर सेमिनार करते हैं
खाए पिए अघाए लोग भूख को
स्वादिष्ट व्यंजन की तरह परोसते हैं
वह जानता है
भूख का भी एक बड़ा बाजार है
भूख सियासी युद्ध का एक हथियार है
भले ही किसी की जान निकल जाए भूख से
पर भूख किसी शातिर के लिए रोजगार है
यह कितनी बड़ी विडंबना है कि
भूख पर उसकी बात कभी नहीं सुनी जाती
जिसे बात करने का सर्वाधिकार है।


 
बौद्धिकता
कुछ लोग गाल बजा रहे थे
कुछ ने साध ली थी चुप्पी
एक बौद्धिक गूँगों की गोष्ठी में
बौद्धिकता से आतंकित कर रहा था
तभी रामजी बाबा जोर से चिल्लाए-
"बड़ पढ़ुआ से बड़ भड़ुआ।"
 
तीन आदमी
एक आदमी
इस धरती का वंदन करता है
धूल से चन्दन करता है
 
दूसरा आदमी
अपनी हरकतों से कब चूकता है
इस धरती पर थूकता है
 
एक तीसरा आदमी भी है
जो इसी थूक से अपना सत्तू सानता  है
उसे कौन नहीं जानता है?

***


 




ललन चतुर्वेदी
(मूल नाम ललन कुमार चौबे)

वास्तविक जन्म तिथि : 10 मई 1966
मुजफ्फरपुर(बिहार) के पश्चिमी इलाके में

नारायणी नदी के तट पर स्थित बैजलपुर ग्राम में
शिक्षा: एम.ए.(हिन्दी), बी एड.यूजीसी की नेट जेआरएफ परीक्षा उत्तीर्ण

प्रश्नकाल का दौर नाम से एक व्यंग्य संकलन प्रकाशित
साहित्य की स्तरीय पत्रिकाओं में सौ से अधिक कविताएं प्रकाशित

रोशनी ढोती औरतें शीर्षक से अपना पहला कविता संकलन प्रकाशित करने की योजना है  
संप्रति : भारत सरकार के एक कार्यालय में अनुवाद कार्य से संबद्ध एवं स्वतंत्र लेखन

लंबे समय तक रांची में रहने के बाद पिछले तीन वर्षों से बेंगलूर में रहते हैं।
संपर्क: lalancsb@gmail.com और 9431582801 भी।   

         

 


 
 
 

 

 

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