Loading...

नयी पीढ़ी ही अश्लील है , अगर अश्लील है नयी कहानी : अनंत विजय के आलेख के बहाने


जेएलएफ में नयी कहानी को लेकर उठे सवालों पर प्रसिद्ध पत्रकार और आलोचक अनंत विजय का ताजा तरीन  लेख बहुत प्रासंगिक है और इस बात को आगे अवश्य बढ़ाया जाना चाहिए अगर नयी कहानी को आगे बढ़ना है। अङ्ग्रेज़ी साहित्य की विद्यार्थी होने के नाते कह सकती हूँ कि हिन्दी साहित्य को अभी अपने संकीर्ण खोल से निकलने में लंबा वक्त लगेगा। लंबा समय लगेगा अपने फतवों और गिरहों के पार धड़कती ज़िंदगी को देखने में, उसके स्पंदन को सही तरह से महसूस कर पाने में और जिन्होने भी उसकी नब्ज़ पकड़ने की कोशिश की है , मंटो से लेकर इस्मत चुगताई तक, मैत्रेयी पुष्पा, मृदुला गर्ग से लेकर गीताश्री तक, उन्हें शुरुआत में इसी अश्लील के ठप्पे के साथ खारिज करने की कोशिश की गयी है । लेकिन प्रश्न यह उठता है कि अपने आस पास के परिवेश से आँखें मूँद कर क्या कोई रचनाकार अपने लेखकीय कर्तव्य से मुँह नहीं मोड लेगा। साहित्य कोई फैंटेसी नहीं। फैन्टेसी पर आधारित कोई रचना पाठकीय पहुँच बना भी ले उसकी कोई भावनात्मक अपील नहीं बन सकती। जब हमारे आस पास का परिवेश तेज़ी से बदल रहा। बहुत तेज़ी से बदल रही अच्छे- बुरे की परिभाषा, नैतिक –अनैतिक के खांचे। जब आज कोई नज़रिया अपनी उत्पत्ति के साथ ही उसकी काट ले कर आता है और पहले की तरह हम चीजों को अलग –अलग डिब्बों में नहीं बंद कर सकते ताकि अपनी सुविधानुसार इस्तेमाल कर सकें तो क्या नयी कहानी से दूर रह पाएगा यह बदलाव ! अगर रहता है या जानबूझ कर किया जाता है तो यह लेखनी से, लेखकीय कर्म से धोखा है । क्या आप देख नहीं पा रहे या देखकर भी अपने शुद्धतावाद के खयाली महल से आदर्शों की कहानियाँ बुनते रहना चाहते हैं कि अब तीसरी –चौथी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे जलते हुए सवाल लेकर आते हैं औए कई बार जिसका कोई उत्तर तक देते नहीं बनता। अभी तो सवाल यह होने चाहिए कि हमारे दायरे, हमारी सोच से बाहर हो रही इस नयी पीढ़ी की जिज्ञासाओं और संभावनाओं को कैसे साहित्य द्वारा बेहतर से बेहतर समाधान देने की कोशिश की जाये लेकिन हम तो अपने दुराग्रहों से ही नहीं उबर पाये अब तक। चाहते हैं ताले ही जड़ें रहें हर नयी सोच पर। कब बड़े होंगे हम! दिल करता है इन्हे कहा जाये, ग्रो अप....नो वन इज़ किड हियर....
अगर रोज महसूस की जाने वाली जिंदा भावनाएं कहानी में दिखाना अश्लीलता है और नयी पीढ़ी की कहानी अश्लील है तो मेरे विचार से इस पूरी नयी पीढ़ी को ही अश्लील मान लिया जाना चाहिए क्योंकि इस पीढ़ी ने अपनी सहज मानवीय भावनाओं को छुपाने के लिए किसी आवरण का सहारा नहीं लिया। इस पीढ़ी ने जीना सीख लिया है या कम से कम जीने के रास्ते बनाना सीख गयी है। इस पीढ़ी को अपनी भावनाओं, अपनी कामनाओं पर शर्म नहीं आती बल्कि वह उसे सहजता से एक्सेप्ट करती है।
एक और बात इसी परिपेक्ष्य में कि इन मॉरल पौलिसिंग के ठेकेदारों को खतरा किस बात से ज्यादा है। कहानी में बढ़ती अश्लीलता से या कि स्त्रियों के खुलकर खुद को अभिव्यक्त कर पाने से जो बिना किसी फतवे के डर के, बिना किसी गढ़ों और मठाधीशों से डरे गढ़ रही हैं नए सपने, खोल रहीं हैं हर बंद रास्ता।

हाँ, इस लेख ने जो सबसे जरूरी मुद्दा उठाया वह यह कि कहानियाँ किसी कारखाने में पैदा नहीं की जा सकती। अगर वह वर्जित क्षेत्रों में बेधड़क प्रवेश करने का माद्दा रखती हैं तो साथ ही उन्हें अपनी बुनावट, अपनी कारीगरी पर भी अपेक्षित श्रम करना पड़ेगा। अंतत: वही कहानी पाठकों के जेहन में रह जाएगी जो उनकी संवेदना से जुड़ेगी। उनकी आत्मा तक पहुंचेगी।

अनंत विजय जी का लेख यहाँ पढ़ें : 

कहानी पर अश्लीलता के आरोप




Rashmi Bhardwaj 6778049756299133587

Post a Comment

emo-but-icon

Home item

Meraki Patrika On Facebook

इन दिनों मेरी किताब

Popular Posts

Labels